हरिहरपुरी के सोरठे
हरिहरपुरी के सोरठे
होता जब है रार, शांति यमघट में जाती।
छोड़ सकल तकरार, सुख का नित सेवन करो।।
जोड़ प्रेम का तार,सारे दिल मिल एक हों।
बने एक संसार, सहज सरल प्रिय शुभ नवल।।
जीना है बेकार,बिन समता के मेल के।
सुख का हो आधार, सत्य न्याय करुणा सुमन।।
सत्कर्मो की देह, रचती स्वर्गिक सीढ़ियां।
स्वर्ग वही है गेह, अभिवादन आदर जहाँ।।
बनता दिव्य समाज, अति विवेक सहयोग से।
करता दिल पर राज, जिसका सच्चा हृदय है।।
आता जब संतोष, योगी बनता मनुज है।
उसी यत्न को पोष,रत्न गर्भ गृह हो जहाँ।।
मानव मालामाल, अंतस में घुसपैठ से।
करता सहज कमाल, रत्नाकर बनकर खड़ा।।
मन-काया हो साफ, दया चरित के पाठ से।
खुद को करो न माफ, यदि गलती कुछ हो गयी।।
होना नहीं निराश, सत्य पंथ पकड़े चलो।
देखो नित आकाश, सतत गमन करते रहो।।
अति पावन है नीर, सुंदर भाव सरित जहाँ।
बनना सीख कबीर, ले लाठी निष्पक्ष की।।
सब मलाल को त्याग, क्षमादान -दाता बनो।
प्रेम लोक में जाग, प्रेमी बन कामी नहीं।।
नारी शक्ति महान, आदर अरु सम्मान हो।
ब्रह्माणी को जान, पूजन करना है सदा।।
नारी का सम्मान, बढ़ाता सबकी गरिमा।
नारी लोक महान, वंदनीय अति स्तुत्य है।।
नारी को पहचान, यह घर में लाती खुशी।
नारी असली ज्ञान, पढ़कर इसका पाठ कर।।
नारी पावन ग्रन्थ, इसे सँजो कर रख सतत।
यही पुण्य का पंथ, राह दिखाती विश्व को।।
Abhilasha deshpande
12-Jan-2023 05:11 PM
Wow
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अदिति झा
12-Jan-2023 04:20 PM
Nice 👍🏼
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